जब पीट-पीटकर जयसूर्या ने खत्म किया एक गेंदबाज का करियर | cricket news
दोस्तों क्या हो यदि एक बल्लेबाज एक गेंदबाज के पीछे हाथ धोकर पड़ गए? क्या हो यदि एक बल्लेबाज एक तेज गेंदबाज को स्पिन गेंदबाजी डालने पर मजबूर कर दे? क्या हो यदि वह मैच उस गेंदबाज का आखिरी मैच बन जाए?
क्रिकेट विश्व कप – 1996
यह कहानी है साल 1996 क्रिकेट विश्व कप की। इस विश्व कप की मेजबानी भारत और पाकिस्तान के साथ प्रथम बार श्रीलंका कर रहा था। घर में हो रहे विश्वकप से भारत को जीत की काफी उम्मीद थी। भारत मोहम्मद अजरुदीन की कप्तानी में बहुत दिग्गज खिलाड़ियों के साथ विश्वकप में प्रवेश किया था।
विश्व कप के शुरुआती दो मैच भारत बड़ी ही आसानी से केन्या और वेस्टइंडीज के खिलाफ जीता। दोनों मैच में सचिन को मैन ऑफ द मैच का अवार्ड मिला। और भारत ने विश्व कप में धमाकेदार परफॉर्मेंस से आगाज किया। विश्व कप में भारत का तीसरा मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था और उस कड़े मैच में भारत को हार का सामना करना पड़ा। अब अगला मैच आता है भारत और श्रीलंका का।
कहानी मनोज प्रभाकर की
मात्र 21 साल की उम्र में, जब भारत 1983 विश्व कप जीता उसके मात्र 1 साल बाद मनोज प्रभाकर ने भारत के लिए डेब्यू किया। मनोज प्रभाकर का जन्म 15 अप्रैल 1963 को हुआ था। मनोज प्रभाकर अपनी तेज तर्रार स्विंग गेंदबाजी और लोअर ऑर्डर में आकर कुछ लंबे शॉट मारने के लिए जाने जाते थे।
मनोज प्रभाकर का डेब्यू श्रीलंका के खिलाफ हुआ परंतु उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि उनका आखिरी मैच भी श्रीलंका के खिलाफ होगा। उन्होंने अपने पहले ही मैच में 10 ओवर में मात्र 16 रन देकर दो विकेट लिए और अपना नाम सबके दिमाग में छाप दिया। कुछ समय बाद उनकी बल्लेबाजी का भी बोल-बाला पूरी दुनिया में बोल पड़ा। उनके नाम एक अनूठा रिकॉर्ड है। उन्होंने 45 वनडे और 20 टेस्ट मैच में बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में शुरुआत की। पूरे विश्व में ऐसा अनोखा रिकॉर्ड सिर्फ मनोज प्रभाकर के नाम है।
12 साल भारतीय टीम में नाम बनाने के बाद अचानक एक मैच में कैसे उनका करें खत्म कर दिया, आइए जानते हैं।
90 के दशक में वनडे का ट्रेंड
90 के दशक में आमतौर पर ओपनर्स का बस एक काम होता था कि गेंद को खाली निकालकर उसे पुराना करना। एक बार गेंद पुरानी हो गई तो बाद में नीचे के बल्लेबाज आकर उसमें रन बनाएंगे। परंतु श्रीलंका के कप्तान ने इस वर्ल्ड कप में एक नई रणनीति बनाई ।
उन्होंने स्पिन गेंदबाज के रूप में खेलने वाले सनथ जयसूर्या को वर्ल्ड कप में ओपनिंग का स्थान दिया। उनके साथ ओपनिंग की जिम्मेदारी विकेटकीपर रोमेश कालूवितरणा को दी गई। वर्ल्ड कप से पहले ही श्रीलंका के कप्तान राणातुंगा ने कह दिया था की वह पूरे वर्ल्ड कप में जयसूर्या और कालूवितरणा को टीम से नहीं निकालेंगे। उन्होंने कहा हमारी असल बल्लेबाजी no. 3 से शुरू होती है। ऊपर के दो बल्लेबाज जो मर्जी करें, जितने मर्जी रन बनाए, हम उन्हें कुछ नहीं कहेंगे। बस मानो जयसूर्या और कालूवितरणा इसी का इंतजार कर रहे थे। उस वर्ल्ड कप की शुरुआत से ही जयसूर्या और कालूवितरणा बहुत तेज गति से रन बना रहे थे। उनका बस यह ही मकसद था की आओ और तेज तेज रन बनाओ।
भारत Vs श्रीलंका – 2 मार्च 1996
वर्ल्ड कप का 24 वां मैच और भारत का चौथा मैच श्रीलंका के खिलाफ था। वर्ल्ड कप का यह मैच भारत में और मनोज प्रभाकर के घर दिल्ली के फिरोज शाह कोटला स्टेडियम में था। श्रीलंका के ओपनर्स ने वर्ल्ड कप में धमाल मचा रखा था। मैच का टॉस श्रीलंका के कप्तान अर्जुन राणातुंगा ने जीता और पहले गेंदबाजी करने का निर्णय लिया।
भारत की पारी की शुरुआत करने सचिन और प्रभाकर आए। उस दिन तो मानो मनोज प्रभाकर का दिन ही नहीं था। मात्र 7 रन पर वह अपना विकेट खो बैठे। मगर सचिन अपनी फॉर्म को आगे ले जाते हुए रौद्र रूप धारण कर लिया था। 5 छक्के और 8 चौकों की मदद से सचिन ने शानदार 137 रन बनाए और कप्तान अजरूद्दीन ने नाबाद 72 रन बनाए। भारत ने श्रीलंका के सामने 272 रन का विशाल लक्ष्य रखा। आपको याद दिलवा दो यह 90 के दशक की बात है। 271 रन उस जमाने के आज के जमाने के हिसाब से 350 रन के बराबर होंगे।
प्रभाकर की आखरी पारी
अब आने वाला था वह क्षण जिसने मनोज प्रभाकर का नीली जर्सी में आखिरी दिन का दिया। बल्लेबाजी की तरह गेंदबाजी की शुरुआत भी प्रभाकर ने करी। पहले ओवर में ही निडर खेल दिखाते हुए कालूवितरणा ने उनके ओवर से 11 रन निकाल लिए। तीसरे ओवर में प्रभाकर दोबारा आए और उनके सामने इस बार थे जयसूर्या। सबको लगा कि नई गेंद में स्विंग का इस्तेमाल करके प्रभाकर या तो विकेट लेगे या रन पर अंकुश लगा देंगे। मगर मनोज प्रभाकर के दूसरे ओवर में जयसूर्या ने 22 रन लूट लिए (4,6,0,4,4,4). उसके बाद तो मानो दर्शकों का गुस्सा फूट गया। मनोज प्रभाकर उस समय दिल्ली के कप्तान भी थे। परंतु दिल्ली के ही मैदान में, भारत के ही दर्शक प्रभाकर हाय-हाय के नारे लगाने लग गए। प्रभाकर का मनोबल बहुत ज्यादा गिर गया था।
यदि आपको लग रहा है की कहानी यहीं खत्म हो गई तो आप गलत है। प्रभाकर को बीच के ओवरों में एक बार फिर गेंदबाजी के लिए बुलाया गया। परंतु सबको आश्चर्यचकित करते हुए प्रभाकर एक तेज गेंदबाज, ऑफ – स्पिन गेंदबाजी करने लग गए। ऑफ – स्पिन के 2 ओवर में भी प्रभाकर ने 14 रन दे दिए। और भारत वह मैच हार गया। प्रभाकर ने 4 ओवर ने 47 रन दिए।
उसके बाद प्रभाकर को टीम से ड्रॉप किया गया। भारत वर्ल्ड कप में सेमीफाइनल में श्रीलंका से हारा और श्रीलंका अंत में जाकर वर्ल्ड कप जीता। उस वर्ल्ड कप में गेंद के साथ बल्ले से भी हल्ला मचाने वाले सनथ जयसूर्या को मैन ऑफ द सीरीज चुना गया।
कहवर्ल्ड कप के बाद की कहानी
इसके बाद भारत इंग्लैंड के दौरे पर गया। परंतु प्रभाकर को टीम में जगा नही मिली। इसके बाद उन्होंने कप्तान अजरूद्दीन पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन्हें टीम से निकाला। उसके बाद तो मनोज प्रभाकर ने जो किया वह अविश्वसनीय है। उन्होंने तेहेलका मीडिया के साथ मिलकर कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन और साथी खिलाड़ियों पर स्टिंग ऑपरेशन किया। उन्होंने स्टिंग ऑपरेशन में अपने गुरु कपिल देव को भी डाल दिया जिसके बाद कपिल देव एक चैनल पर आकर रोने लग गए थे। बाद में उस स्टिंग ऑपरेशन में मोहम्मद अजरूद्दीन के साथ प्रभाकर का नाम भी जुड़ जाता है, और वो बैन कर दिया जाता है। अपने 33 वे जन्मदिन से तो कुछ दिन पहले उन्होंने संन्यास का फैसला किया।
इस तरह मनोज प्रभाकर का करियर हमेशा के लिए खत्म हो गया।
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